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घर मुझे पहचानते हो
घर मुझे पहचानते हो आज बहोत वक़्त के बाद गुज़ारे है कुछ यादगार पल तेरी पनाह में,भूल गया था तुझे में इस दौड़ती भागती ज़िन्दगी में,तू ही है जो करता है रोज़ इंतज़ार मेरे लौट आने का। आज ज़िंदा हुआ है हर वो पल जो दफ़्न था कही। जी है आज मेने फ़िरसे बचपन ज़वानी घर मुझे पहचानते हो। हर ख़ुशी देखी तुमनें मेरी देखा हर गम मन कर रहा है लिपट के ऱोलु तुमसे घर मुझे पहचानते हो। रखना मुझे मेहफ़ूज़ तुम अपनी बाहों में घर मुझे पहचानते हो।
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