...

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"प्रणय- वर्षा में भीगकर"
लब गुलाब ये तेरे, लबों से अपने सींचकर,
लगा कर अंग तुझे, बाहों में कस भींचकर।
अंग से अंग मिला, इस तरह सटा कर उफ़,
होते सराबोर तेरे, प्रणय वर्षा में भीगकर।

यूँ वार नयन के, नयनों पर सहते प्यार से,
लब कानों की चूम, कानों में कहते प्यार से।
दो पल को समाते यूँ, के जी लेते इक़ जनम,
कितने ही जनम तुझमें, यूँ बहते प्यार से।

हर इक बूँद प्यार की तेरे, होंठों से चुरा लेते,
यूँ समाते तुझमें बस, तुझे अपना बना लेते।
फिर न संभलते क़दम, बाहों में लेते खींचकर,
होते सराबोर तेरे, प्रणय वर्षा में भीगकर।
© विवेक पाठक
#विवेक0799