...

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पुकार पुत्र की
रूकते नहीं थे कदम उस पुत्र के
सिंचा था उस पिता ने अपने लहू से
प्रेम ही था उस पिता का कुछ ऐसा
नादान कहूं कैसे उस बालक को
आंखें आंसुओं से भर भर लिए आता
रोती आवाज दिल को चीर चीर जाती थी
सम्हलती नहीं थी दशा
गोद जब तक मिल न जाती
तड़पता वह बालक ऐसे
बिन सीने से लगे उस पिता के
प्राण पखेरू उड़ जाएंगे जैसे
सांसें चढ़ जाती जाने किस ब्रम्हंड में
उस परमात्मा को पुकारती
विवश कर उस पिता को
पा जाती थी अपनी थाती....।



थाती=धरोहर


© सुशील पवार