...

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धर्म और वर्ण....
गीता का जो उपदेश है ,
कर्म ही धर्म का सन्देश है।
तो क्यूँ चार वर्ण हैं ;
क्यूँ फैला ये द्वेष है।।
धर्म और अधर्म की,
बुनियाद ही अगर कर्म है ;
तो क्यूँ वर्ण का निर्धारण करता जन्म है....?

गीता सा जो उपदेश देता ,
ग्वाला वो ब्रज का।
यादव है जात उसकी ;
ब्राह्मण से निपुण था।।

चन्द्रगुप्त के पिता ना,
ना कोई जात उनकी।
चक्रवर्ती राजा था ,
चाड़क्य ने रची कथा जिनकी ।

योद्धा क्षत्रियों से बड़ा ,
राजा वो अशोक था।
वंशज चन्द्रगुप्त का वो ;
राजाओं का राज था।।

सूर्य पुत्र था मगर ,
कहलाया बस वो सूत का।
रक्त था कुंती पर ;
ऋण तो था राधा के दूध का।।

इंद्र मागे भीख जिससे वो दानवीर कर्ण था ;
योद्धा क्षत्रियों से बड़ा ,
पर था तो शूद्र वर्ण का।।

अर्जुन से निपुण वो महान एकलव्य था ,
दोष उसका ये था कि ना वो क्षत्रिय था।।
मांगा था अंगूठा जिसने गुरु वो महान था ;
देता ज्ञान जात का वो ,
क्षत्रियों का करता वखान था।।

ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं जिसको पसंद ना आये लड़ना ना आना मुझसे , क्युकि मुझे मेरा और दूसरों का समय बर्बाद करने में कोई दिलचस्पी नहीं है।

© श्वेता श्रीवास