...

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वो शख़्स
चार दिन मेरी ज़िन्दगी में आकर कमाल कर गया,
वो शख़्स अमावस में भी पूर्णिमा की रात कर गया!!

पहले जो जहन्नुम का गुमाँ कराती थी ज़िन्दगी,
आकर बैठा जो पहलू में ज़िन्दगी को जन्नत कर गया!!

आज भी ज़ुबाँ पर तेरे नाम का पहरा रहता है,
मेरी ज़ुबां को मेरी क़लम का साथी बना कर चला गया !!

ये नज़्म ,ये ग़ज़ल सब उसकी नज़र ही कर दी है,
जो रदिफ़ क़ाफ़िया बहर मिसरा सब सिखा कर चला गया !!

चाहे तू जुगनू बनकर ही आजा इल्त्ज़ा है तुझसे,
ख़ुशनुमा सहर की क्यूँ रात कर के चला गया !!

मेरी हर नज़्म, हर ग़ज़ल ,हर तहरीर में तू ही तू है ,
इस तहरीर को क्यों तन्हा कर के चला गया !!

उम्मीद है आएगा ज़रूर तू लौट कर एक दिन ,
गुल को उम्मीद-ए-सहर की आहट देकर चला गया!!

मेरी 300वी पोस्ट दोस्त के लिये समर्पित जो गुल को लिखने के लिये प्रेरित कर गया 🌺🙏🏻
© गुलमोहर