...

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नारी

किसी की मां  किसी की बहन
किसी की अर्धांगिनी का रूप लेती है

कभी कोमल सी पार्वती सी
कभी रुद्र सी देवी काली का रूप ले लेती हैं

नारी स्त्री के रूप में मकान को घर बनाती है
मां के रूप में जग जननी कहलाती हैं

सुख शांति के आस में
कभी चुप भी रह जाती है

यह नारी उस ईश्वर का
सटीक प्रतिबिंब कहलाती हैं

हर कला में खुद को ढलकर
अपना अस्तित्व खुद बनाती है

नीर  सागर से हिमालय के पर्वत तक
यह जननी मां कहलाती है

कभी anabel कभी barbi का रूप  दिखलाती है
अंतहीन सी  ये नारी प्रथम शीर्षिका बन जाती है

क्या लिखूं नारी पे अब मैं
यह तो ईश्वर को भी कभी समझन ना आती है
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