...

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ग़रीबी
वक्त ने वक्त को पर्दे में‌ रखा
अपनों को छोड़ ग़ैर को गले लगाया
धीरे धीरे सब का छूटता गया था
ना कोई अपना है ना कोई पराया
सब कुछ बदल जाता है
मगर गरीबी और लाचारी
रेखा वहीं की वहीं अटकी
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