...

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मैं हिंदी हूँ....
मैं हिंदी हूँ,
सम्मान दिलाने वाली हूँ।।

नदियों सी निर्मलता मुझमें,
पुष्पों सी पवनता है...
माता सी ममता लेकर,
तुम्हे अधिकार दिलाने वाली हूँ।।

कभी दोहे, रस, छंद हूँ मैं,
तो कभी कहानी और कविताए हूँ...
नीति, श्रंगार, वात्सल्य हूँ मैं...
कबीर, रसखान की मैं लाडली हूँ।।

1500 से खड़ी हुई,
संस्कृत की उत्तरादिकारी हूँ।
पर 76 सालों के बाद भी ,
अंग्रेजी दसता से मैं हारी हूँ।।

मातृभाषा होकर भी माता सा सम्मान नहीं,
कब समझोगे तुम मुझे,
मैं स्वाभिमान की प्रहरी हूँ।।

विभिन्नताओं को दूर कर,
राष्ट्र को एक धागे में पिरोने वाली हूँ।।

संविधान में तो अधिकार दिया,
पर तुम ही बताओ ए - भारत संतति
कब मैं राष्ट्र भाषा कहलाने वाली हूँ...?

© श्वेता श्रीवास