रंजिश
ज़िन्दगी और मौत की अज़ल-ओ-अबद रंजिश में
मुसलसल कैद हूँ इस कदर मैं जन्मों से
कि मौत भले ही आ जाए एक दिन ज़िन्दगी को
पर न जाने फिर भी क्यों मर रहा हूँ मैं हर रोज़ जन्मों से|
© Maneet Saluja
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कि मौत भले ही आ जाए एक दिन ज़िन्दगी को
पर न जाने फिर भी क्यों मर रहा हूँ मैं हर रोज़ जन्मों से|
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