1 views
बेदिली
बेदिली
ख़्वाबों को वो संदूक में बंद कर आयी थी
जब उस से कह दिया गया वो पराई थी
इच्छाएं तो उसकी चौखट से लौट गई
रिवाज़ों के नाम पे बेचारी इतनी लाचार हो गई
बड़ी बेदिली थी ज़िन्दगी को उस से
आज सजी इतनी फिर कभी सजने की फुर्सत न मिली
यूं तो घड़ी आज विदाई की आई
ये उसकी थी या खुशियों की वो कहाँ समझ पाई
© khush rang rina
ख़्वाबों को वो संदूक में बंद कर आयी थी
जब उस से कह दिया गया वो पराई थी
इच्छाएं तो उसकी चौखट से लौट गई
रिवाज़ों के नाम पे बेचारी इतनी लाचार हो गई
बड़ी बेदिली थी ज़िन्दगी को उस से
आज सजी इतनी फिर कभी सजने की फुर्सत न मिली
यूं तो घड़ी आज विदाई की आई
ये उसकी थी या खुशियों की वो कहाँ समझ पाई
© khush rang rina
Related Stories
7 Likes
0
Comments
7 Likes
0
Comments