...

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जिंदगी हमसे
थोड़ी सी खुशियां चाही क्या खता हो गई,
जिंदगी हमसे जो इस तरह खफा हो गई।

सुनु दिल की खामोशियां या जज्बातों को,
यूं जो जीने की न जाने कैसे पता खो गई।

सूरज की रोशनी की जैसे जो चमकती थी,
अब रोशनी ही नहीं अंधेरों की घटा घिर गई।

जैसे किस्मत ए जिंदगी हमसे कुछ यूं खेल रही हो ,
जीत,बाजी दोनों हमारी थी की यूं पासा पलट गई।

जिंदगी चाह चांद सितारों का चमकती हो हमारी,
पर जिंदगी ताप्ती सूरज चट्टान की वफा हो गई ।

थोड़ी सी खुशियां चाही क्या खता हो गई,
जिंदगी हमसे जो इस तरह खफा हो गई।



© Savitri..