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"उन सितारों के परे"
ASHOK HARENDRA
© into.the.imagination
§§
सोचता था कभी-कभी, यूँ छत पर पड़े-पड़े!
क्या कोई रहता है, उन सितारों के परे?
देखता था ग़ौर से, जब करके नयन बड़े!
निहारिका धारण किए हो, आभूषण रत्न जड़े!
बोला दादी से मैं, बड़ी उत्सुकता भरे!
दादी कौन रहता है, इस वसुन्धरा के परे?
सिर पर फेरे हाथ दादी ने, स्नेह से भरे!
रहते हैं तेरे दादा, उन सितारों के तले,
धरा है बड़ी प्यारी सी, गिरि हैं बड़े-बड़े,
सदा वहाँ होते हैं, उपवन हरे-भरे,
न दुःख, न शोक, आमोद है चहुँ ओर,
रहते हमेशा लोग वहाँ, हर्ष से भरे,
पूछा मैंने दादी से, हम क्यो हैं रुके हुए?
मैं भी देखना चाहूँ, वो उपवन हरे-भरे!
हँसकर! बोली दादी, ऐसे न कोई जाए,
पहुँचे वहाँ वही, जिसने सत्कर्म करे।
.•°•°•.
Click link below to read more!
#treasure_of_literature
© into.the.imagination
§§
सोचता था कभी-कभी, यूँ छत पर पड़े-पड़े!
क्या कोई रहता है, उन सितारों के परे?
देखता था ग़ौर से, जब करके नयन बड़े!
निहारिका धारण किए हो, आभूषण रत्न जड़े!
बोला दादी से मैं, बड़ी उत्सुकता भरे!
दादी कौन रहता है, इस वसुन्धरा के परे?
सिर पर फेरे हाथ दादी ने, स्नेह से भरे!
रहते हैं तेरे दादा, उन सितारों के तले,
धरा है बड़ी प्यारी सी, गिरि हैं बड़े-बड़े,
सदा वहाँ होते हैं, उपवन हरे-भरे,
न दुःख, न शोक, आमोद है चहुँ ओर,
रहते हमेशा लोग वहाँ, हर्ष से भरे,
पूछा मैंने दादी से, हम क्यो हैं रुके हुए?
मैं भी देखना चाहूँ, वो उपवन हरे-भरे!
हँसकर! बोली दादी, ऐसे न कोई जाए,
पहुँचे वहाँ वही, जिसने सत्कर्म करे।
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