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काग़ज़ के टुकड़े
काग़ज़ के टुकड़े जैसे बिखरकर रह गया
तक़दीर मेरा भी कुछ यूँ मुकरकर रह गया
कितना झेलू मैं इस जुल्म-ओ-सितम को
ये दिल मेरा अब तो यूँ ही टूटकर रह गया
चाहा था दिल से मगर क्या चाहना गुना है?
तेरी इश्क़ की ख़्वाहिश भी फुटकर रह गया
मोहब्बत सच्चा था और तू विश्वास न किया
इतना भी क्या जिद्द जो तु डटकर रह गया
तेरी उल्फ़त में तो बस वो हाल हुआ है मेरा
बचा था जो साँस वो भी यूँ छुटकर रह गया
© Raj
#shreerajmenon
तक़दीर मेरा भी कुछ यूँ मुकरकर रह गया
कितना झेलू मैं इस जुल्म-ओ-सितम को
ये दिल मेरा अब तो यूँ ही टूटकर रह गया
चाहा था दिल से मगर क्या चाहना गुना है?
तेरी इश्क़ की ख़्वाहिश भी फुटकर रह गया
मोहब्बत सच्चा था और तू विश्वास न किया
इतना भी क्या जिद्द जो तु डटकर रह गया
तेरी उल्फ़त में तो बस वो हाल हुआ है मेरा
बचा था जो साँस वो भी यूँ छुटकर रह गया
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