तुम...
भूलती नहीं जो सदियों से कहीं
वही जहन में अटकी याद से हो तुम
माँगी नहीं जो किसी शै भी किसी से
वही किस्मत में लिखी दुआ से हो तुम
आ जाए जो हर बार छूने साहिल को
वही मदमस्त जिद्दी लहर से हो तुम
आ गिरा जो दामन में महकाने के लिए
वो पारिजात के पुष्प से पवित्र हो तुम
समझ कर भी जिसे समझ ना सके कोई
वो एक कठिन सवाल से हो तुम
और जो खुद ही खुद को सुलझा कर रख दे
वो एक खुली किताब से हो तुम
© * नैna *
वही जहन में अटकी याद से हो तुम
माँगी नहीं जो किसी शै भी किसी से
वही किस्मत में लिखी दुआ से हो तुम
आ जाए जो हर बार छूने साहिल को
वही मदमस्त जिद्दी लहर से हो तुम
आ गिरा जो दामन में महकाने के लिए
वो पारिजात के पुष्प से पवित्र हो तुम
समझ कर भी जिसे समझ ना सके कोई
वो एक कठिन सवाल से हो तुम
और जो खुद ही खुद को सुलझा कर रख दे
वो एक खुली किताब से हो तुम
© * नैna *
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