...

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तुम्हें सोचकर...…
तुम्हें सोचकर भी अब वो रश्क़ नहीं होता,
दर्द-ए-दिल नहीं, पलकों में अश्क़ नहीं होता।

ये वीरानियाँ भी रात की, पूछ लेती हैं अक्सर,
क्या हुआ तुझे आख़िर, क्यूँ रातभर नहीं रोता।

तन्हाईयाँ दिखाती बेरुखी, हमसे कहकर यही,
बेहिसाब मेरे पास तन्हाईयाँ, तन्हा यूँ नहीं होता।

दिल भी पूछता है जिंदगी से, न जिंदगी में वो,
न याद न निशां, क्यों फिर रातभर नहीं सोता।© विवेक पाठक