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यूँ ही नहीं...
#आदर्शितव्यक्तित्व
यूँ ही नहीं मिल जाती हैं, रौनकें किसी को भी
इक हिस्सा ज़िन्दगी का, जलाना पड़ता है।
यूँ ही नहीं चमकती है, तक़दीर किसी की भी
इक दौर तलक़, अपने को, गलाना पड़ता है।
यूँ ही नहीं आती है, ख़ुशी, अपनों के चेहरों पर
तुझे अपनी ख्वाहिशों को, भुलाना पड़ता है।
यूँ ही नहीं बन जाती है, 'शख़्शियत' ख़ास कोई
अपना किया हर वादा, निभाना पड़ता है।
पानी हो अगर तुझको, दिलों में, जगह सबके
तो पहले ख़ुद के 'मैं' को, मिटाना पड़ता है।
यूँ ही नहीं रह पाता, बेदाग कोई "भूषण"
हर इक कदम संभलकर, बढ़ाना पड़ता है।।
यूँ ही नहीं मिल जाती हैं, रौनकें किसी को भी
इक हिस्सा ज़िन्दगी का, जलाना पड़ता है।
यूँ ही नहीं चमकती है, तक़दीर किसी की भी
इक दौर तलक़, अपने को, गलाना पड़ता है।
यूँ ही नहीं आती है, ख़ुशी, अपनों के चेहरों पर
तुझे अपनी ख्वाहिशों को, भुलाना पड़ता है।
यूँ ही नहीं बन जाती है, 'शख़्शियत' ख़ास कोई
अपना किया हर वादा, निभाना पड़ता है।
पानी हो अगर तुझको, दिलों में, जगह सबके
तो पहले ख़ुद के 'मैं' को, मिटाना पड़ता है।
यूँ ही नहीं रह पाता, बेदाग कोई "भूषण"
हर इक कदम संभलकर, बढ़ाना पड़ता है।।
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