...

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ग़ज़ल
रौनक़ - ए- महफ़िल- ए- आरज़ू कुछ नहीं
मैं रहूँ तू रहे चार सू कुछ नहीं

कर रहे हैं तलब एक दूजे को हम
जबकि मैं कुछ नहीं और तू कुछ नहीं

दिल कहे अब कोई काश मुझ सा मिले
ज़िन्दगी ने कहा हू-ब-हू कुछ नहीं

गुफ़्तुगू तुमसे करता हूँ कैसे भला
औ हक़ीक़त ये है रू-ब-रू कुछ नहीं

सामने वो मिरे आ गए तो ये हुआ
देखते ही रहे गुफ़्तगू कुछ नहीं

शाबान नाज़िर
© SN