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Majboori


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**#मजबूरी**

झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानो क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
दर्द में मुस्कुराते रहना भी ज़रूरी है।

क्या जानो तुम,
कई बार अपने आप को इस ज़ालिम दुनिया की खुशी के लिए
कुर्बान कर देना भी दिमाग की जी हज़ूरी
और दिल की मजबूरी है।

क्या पता होगा तुम्हें,
दिन-रात अपने माता-पिता के लिए मेहनत करने के बाद भी
"नालायक है तू" सुनना भी पड़ता होगा।

क्या पता होगा तुम्हें,
अपने अंदर के तूफ़ान को यूँ दबाकर रखना
कितना मुश्किल होता होगा।

क्या पता होगा तुम्हें,
हज़ार बार रात में चिढ़ने के बाद,
पति की मार के साथ,
ज़िंदगी में आगे भी बढ़ते रहना होगा।

कई रातों में अपने ही पिता की हवस का शिकार भी
होना पड़ता होगा।

अपनी मोहब्बत को इस ज़ालिम ज़माने के लिए ठुकराकर
आगे भी बढ़ना पड़ता होगा।

अपने परिवार के लिए दिन-रात मेहनत करने के बाद भी
"कुछ नहीं करता" का ताना भी
ज़हर का घूँट समझकर पीना पड़ता होगा।

क्या पता तुम्हें,
कितना दर्दनाक है वो हर पल,
जब सही होते हुए भी चुप रहना पड़ता है।

हर पल चेहरे पर मुस्कान रखकर
रात में नम होना पड़ता है।
अंदर से तिल-तिल मरकर भी
अपनों के लिए जीना पड़ता है।

क्या जानो तुम,
सब मजबूरी है,
# Wrotico promt
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