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सूकून का मका
मंज़िल की ओर जा रहे हैं
मन के भव अब दबा रहे हैं
अश्क जितने बहनें थे बहे चुके
अब खुद पर प्रेम लूटा रहे हैं
जो तलाश थी वो खत्म हुई
अपनेपन के लिबाज़ से ज़रा मिलने में हम कतरा रहे हैं
मोह माया से दूरी बना मियाज़ाओ को अपना रहे हैं भटक गये थे चकाचौंध में
अब खुद को सही दिशा दिखा रहे हैं
सुकून का मका मिला अकेले में
सच पूछो तो अब सच में मुस्कुरा रहे हैं।।
मंज़िल की ओर जा रहे हैं
मन के भव अब दबा रहे हैं
अश्क जितने बहनें थे बहे चुके
अब खुद पर प्रेम लूटा रहे हैं
जो तलाश थी वो खत्म हुई
अपनेपन के लिबाज़ से ज़रा मिलने में हम कतरा रहे हैं
मोह माया से दूरी बना मियाज़ाओ को अपना रहे हैं भटक गये थे चकाचौंध में
अब खुद को सही दिशा दिखा रहे हैं
सुकून का मका मिला अकेले में
सच पूछो तो अब सच में मुस्कुरा रहे हैं।।
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