...

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बचपन की यादें
इन पक्के मकानों में गुम हो गयी,
कच्चे घरो की मिट्टी की वो खुशबू,
जहां मिट्टी में ही खेलते - खेलते।
होती थी, रोज गुफ्तगु!

शाम को दादी का कहानी सुनाना,
और सुनते - सुनते हमारा सो जाना,
बीत गयी वो कहानी वाली बातें,
अब बिना सोये हो जाती है, रातें।

उस गरीबी का अपना था, मजा
ये अमीरी भी बन गयी है, सजा
इस अमीरी से वो गरीबी अच्छी थी,
कम से कम हर बात तो सच्ची थी!

वो दीवाली की रोशनीं, और होली के रंग
अब हर चीज है, पास में
लेकिन नहीं है, अपनों का संग!
@SUNIL3140