...

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क्यूँ...?उम्मीद का कोई अर्क नहीं मिलता
जब तन्हाइयाँ घेरती है चहुँ दिशाओं से ,
नैनो की इस बरसात का ;
राज नहीं मिलता...
हृदय की वेदना कठोर भी हो जाती है पर ,
अंतरआत्मा भी चीख कर बुलाती है ;
स्वयं के ही प्रश्नों का कोई हल नहीं मिलता...
ढूँढता हूँ जिधर कुछ ना आता नज़र ,
कुछ ना आता नज़र इन प्यासी निगाहों को ;
क्यूँ...
उम्मीद का कोई अर्क नहीं मिलता...


© श्वेता श्रीवास