...

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गौरैया
गौरैया इक दिन भोर जगी,
उसको थी ज़ोर की भूख लगी।
भोजन को भटकी इधर उधर,
कहीं एक अन्न न मिला मगर।
थक गई भूख से बेचारी,
देखी इक बाजरे की क्यारी।
बड़ी खुशी मिली खाने को चली,
मिली उसमे एक अनोखी कली।
लगी उसमे इक रंगीन छड़ी,
दिखने में थी स्वादिष्ट बड़ी।
गौरैया ने जब खाया उसे,
था स्वाद ज़रा न भाया उसे।
सहसा उसको यह भान हुआ,
मुंह उसका लहूलुहान हुआ।
थी दर्द में बेचारी छपटी,
आंखों पे अंधियारी लिपटी।
पानी के लिए तड़पती थी,
पीड़ा में पंख फड़कती थी।
अंतिम सांसें गिनती थी,
पर अंत में उसकी विनती थी,
अनीति जो उसके साथ हुई,
हो और किसी के संग नहीं।
गुजरा वहां से तभी एक कृषि,
पड़ी उसे बेचारी पक्षी दिखी।
सोचा की यंत्र बड़ा अच्छा है,
करता फसलों की रक्षा है।
खेतों में अपने भी लगाऊंगा,
फसलों को अपने बचाऊंगा।
- Twinkle Dubey
© metaphor muse twinkle