चेहरा
चेहरे पर मासूमियत दिल में होशियारी रखता है,
अब कौन आजकल बेमतलब की यारी रखता है.
कोई फ़र्ज़ अदा करता है कोई क़र्ज़ अदा करता है,
अब कौन आजकल पूरे दिल से रिश्तेदारी रखता है.
जिसे देखो वही अपने ही नशे में चूर नजर आता है,
कोई दौलत की तो कोई शोहरत की खुमारी रखता है,
वफ़ा के एवज में वफ़ा मिले यह जरूरी तो नहीं होता,
इंसान जमीर को बेचकर दिखावे की खुद्दारी रखता है,
अब कौन आजकल बेमतलब की यारी रखता है.
कोई फ़र्ज़ अदा करता है कोई क़र्ज़ अदा करता है,
अब कौन आजकल पूरे दिल से रिश्तेदारी रखता है.
जिसे देखो वही अपने ही नशे में चूर नजर आता है,
कोई दौलत की तो कोई शोहरत की खुमारी रखता है,
वफ़ा के एवज में वफ़ा मिले यह जरूरी तो नहीं होता,
इंसान जमीर को बेचकर दिखावे की खुद्दारी रखता है,
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