कुछ बातें सच्चाई से…..
चलने को तैयार हूँ,
लेकिन लोग कहते हैं मैं बीमार हूँ |
इन्सान का बच्चा हूँ लेकिन,
लोग कहते हैं मैं जन्म से बेकार हूँ |
कैसी यह तैयारी हैं,
सबकी मानसिकता में आ गई कोई बीमारी है |
क्यो सोच सबकी बदली है,
लेकिन समस्या कहाँ पर आकर अटकी है |
अनजान हैं लोग सब,
जिंदगी के शिखर पर जाने वाले रास्ते से |
मुमकिन हैं भटक जाते हैं लोग अक्सर,
सच्चाई वाले रास्ते से |
कुदरत ने भी अजीब जाल,
बिछा कर रखा हमें माया को दिखा कर |
कुछ लोग ही समझते हैं,
छोड़ कर माया चलते रहते हैं,
सच्चाई को अपना कर |
ख़ुशनसीब हूँ के मोहब्बत का बाग,
मेरे दिल में ही नहीं मेरे चारों ओर भी है |
कोई गलतफहमी का एहसास नहीं है,
ना कोई मेरे पास नफरत की दीवार भी है |
ग़मो का पहाड़ तो मैंने,
कब का तोड़ दिया अपने प्यार की तरंगों से |
जिंदगी के किसी भी रास्ते को पार करता हूँ,
मैं बिना किसी उमंगों से |
चल फकीरा चल उठ,
आया नया सवेरा,
भगा दे अपनी जिंदगी से यह अंधेरा |
सुन ले,
मान भी ले,
कर ले फैसला,
अपने इरादों से बाँधले यह सवेरा |
कोई फर्क नहीं पड़ता “जिंद” तुझे,
हँसते हुये को देखकर कोई जल जाए |
तुम्हे शिखर के रास्ते को पाना है,
इसलिये शायद थोड़ी हो हलचल जाए |
#जलते_अक्षर
© ਜਲਦੇ_ਅੱਖਰ✍🏻