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ज़िंदगी के लमहे हमसे ये क्या करवा रहे हैं
जिंदगी के लम्हे हमसे ये क्या करवा रहे हैं, तुझे सुलझाने की कोशिश में हम खुद उलझते जा रहे हैं।

कुछ बिखरे से हैं ये रास्ते, जिन पर हम चलना चाह रहे हैं।
कुछ उलझन में है ये मन, जिससे हम भी लड़ते जा रहे हैं।
समय का खेल है कहां ले आया हमें, अजीब से मोड़ पर खड़े हैं।
न खुद को जान पा रहे हैं, न किसी को पहचान पा रहे हैं।
सादगी में छुपे हुए अजीब से लोगों को, बस अपना माने जा रहे हैं।
दूर हो रहे हैं क्या अपनों से, या किसी अनजान के पास जा रहे हैं।
जुड़े हुए हैं उसे जो चला गया है, या उसी की खोज में उसके पीछे भागे जा रहे हैं।
अकेले में आंसुओं को बहने देना चाह रहे हैं, या किसी से दिल की बात कहना चाह रहे हैं।


ज़िंदगी के लमहे हमसे ये क्या करवा रहे हैं, तुझे सुलझाने की कोशिश में हम खुद उलझते जा रहे हैं।

खोया है जो उसको पाना चाह रहे हैं, जो पास है उससे दूर जाना चाह रहे हैं।
छुप के रहना चाह रहे हैं, सबसे अलग होना चाह रहे हैं।
दिन में बस सोना चाह रहे हैं, देख ना ले कोई हमें इसलिए छुपके रोना चाह रहे हैं।
समय को थामना चाह रहे हैं, उसे यूं ही बतलाना चाह रहे हैं।
इतनी जल्दी मत बढ़ तू आगे ऐसे, अभी हम पुराने लम्हों में जीना चाह रहे हैं।
पता भी नहीं चल रहा है अभी इस दिमाग को, कि ये मन की तनहाइयों में हम क्या चाह रहे हैं।
खुद को खोना चाह रहे हैं, यह किसी को पाना चाह रहे हैं।
सबसे दूर होना चाह रहे हैं, या सबके सामने दिल को खोलकर रोना चाह रहे हैं।
हर बंधन खोल के दौड़ना चाह रहे हैं, या खुद को चीजों में बांध के छोड़ना चाह रहे हैं।


जिंदगी के लमहे हमसे ये क्या करवा रहे हैं, तुझे सुलझाने की कोशिश में हम खुद उलझते जा रहे हैं।



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