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ना आना लाडो देश मेरे
ना आना लाडो, देश मेरे
यहाँ पुरुष नहीं, पशु बसते हैं,
मानव का रूप धरे, अजगर
प्राणी को, जीवित ग्रसते हैं।
मूरत को, वंदन करते हैं
नित, पूजन-अर्चन करते हैं,
पर स्त्री को, मान नहीं देते
सम्मान का मर्दन, करते हैं।
निज जाति, धरम को श्रेष्ठ बता
जब कर्म घृणित, वह करते हैं,
दूषित कर, धर्म व जाती को
वह स्वयं, कलंकित करते हैं।
मुर्दों पर, महल बनाने के
सत्ता और शक्ति पाने के
ये जो चलन चल पड़े हैं "भूषण"
इस हृदय को, विचलित करते हैं।।
यहाँ पुरुष नहीं, पशु बसते हैं,
मानव का रूप धरे, अजगर
प्राणी को, जीवित ग्रसते हैं।
मूरत को, वंदन करते हैं
नित, पूजन-अर्चन करते हैं,
पर स्त्री को, मान नहीं देते
सम्मान का मर्दन, करते हैं।
निज जाति, धरम को श्रेष्ठ बता
जब कर्म घृणित, वह करते हैं,
दूषित कर, धर्म व जाती को
वह स्वयं, कलंकित करते हैं।
मुर्दों पर, महल बनाने के
सत्ता और शक्ति पाने के
ये जो चलन चल पड़े हैं "भूषण"
इस हृदय को, विचलित करते हैं।।
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