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खो बैठे है।
ना नींद है आंखो में, ना ही उजाले की चमक,
ना आस है कुछ पाने की, ना ही आस कुछ खोने की,
चाहें तो बहुत कुछ पर, हो ना पाए हमसे कुछ।
अंजान है हर उस चीज़ से ,जिस चीज़ को हम चाहना चाहे बेहद।।
सपने तो सजाएं बहुत पर, स्थिर एक को भी ना कर पाएं,
करना तो चाहे बहुत कुछ पर, हो हमसे कुछ ना पाएं।
एक महोबत मिली है, उसे भी खुश ना राख पाए,
फिर क्या ही आस लगाए खुद से जब हम उस आस को ही खो बैठे हैं।।
~वंशिता कुमारी
© All Rights Reserved
ना आस है कुछ पाने की, ना ही आस कुछ खोने की,
चाहें तो बहुत कुछ पर, हो ना पाए हमसे कुछ।
अंजान है हर उस चीज़ से ,जिस चीज़ को हम चाहना चाहे बेहद।।
सपने तो सजाएं बहुत पर, स्थिर एक को भी ना कर पाएं,
करना तो चाहे बहुत कुछ पर, हो हमसे कुछ ना पाएं।
एक महोबत मिली है, उसे भी खुश ना राख पाए,
फिर क्या ही आस लगाए खुद से जब हम उस आस को ही खो बैठे हैं।।
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