...

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मन मेरे।
तेरा अर्चन चलो करें हम,
नयनन से सुनावत गीत समीर,
मन मेरे; मृण पूजन क्यों!

तेरा वंदन चलो करें हम,
नयनन से सुनावत गीत समीर,
मन मेरे; मृण अभीवंदन क्यों!

तुझ में भोग अर्पण, चलो करें हम,
नयनन से सुनावत गीत समीर,
मन मेरे: मृण में तृप्ति अर्पण क्यों!

आस्था देती बोध दर्शन,
नयनन से सुनावत गीत समीर,
मन मेरे; क्यौ मिट्टी में मिट्टी का गुंथन।

सुमिरत समीर मधुर नयन से,
कैसे; धरत सूत धरणी नापी!
मन मेरे; क्यौ घोर भ्रम धरत, अचल को राखी!

{ईश्वर का केवल बोध हो सकता है।}


अर्थ---मृण-मिट्टी, भोग-भोजन,
सुत-धागा, समीर-वायु,
धरणी-पृथ्वी, [अचल-गती रहित, Speed, devoid of,]

@kamal