...

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ससुराल
सुनो सज्जनों ससुराल में सास ससुर की दुहाई,
नई बहू संग अपने देखो तनिक दहेज न लाई।
तनिक दहेज न लाई उसपे खाना बुरा बनाती,
राशन का बजट है फिसला देखो कितना खाती।
इकलौते बेटे को हमारे पल में अपना बनाया,
जाने इस चुड़ैल ने उस पर कौन सा जादू चलाया।
इधर बेचारी बहू की व्यथा, खाना कौन बनाए,
इन भूखे शेरों को हर दिन कितना कोई खिलाए।
सुबह सुबह उठना पड़ता है, कितने बिगड़े हालात,
जिस दिन मैं बीमार भी पड़ती, कोई न माने बात।
कोई न माने बात, पति भी पक्ष लेते मां बाप का,
ना ससुराल है घर अपना, ना ही अपना है मायका।
पति बेचारे अपने ही घर में फिर रहे मारे मारे,
इधर मां- बाप, उधर बीवी ने दिन में दिखाए तारे।
पत्नी को समझाए बिना ही उसपर हाथ उठाए,
मात पिता की करे अवहेलना, जबान उनसे लड़ाए।
मेरी एक न चलती इस घर में सबकी यही शिकायत,
आए दिन होती ससुराल में एक नई महाभारत।

© metaphor muse twinkle