...

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मैं क्या कहूं.....🤐🤫
भुला दिया है तुमने मुझे बेतुकी लड़ाई में,
तुम्हे बुराई ही नज़र आई मेरी अच्छाई में.

मुझ जैसे बावफा मर जाते है तड़प के,
तुम जैसे लोग, जिंदा रहते है, जुदाई में,

किस पे क्या बितती तुम्हे इससे क्या ?
बड़ा मज़ा आता है तुम्हें तो बेवफाई में.

शिकवा, अपनो से करूंगा, तुमसे नही,
तुम्हारा ही तो हाथ है मेरी हर रुसवाई में.

दिन है कोहरे में बुझा, रात सर्द में डूबी,
निकम्मे से पड़े रहते है, अकेले रजाई में.

बस ! याद आती है तुम्हारी, रह रह कर,
अब तो ये हाल है दिल का इस तन्हाई में.

मै क्या हूं ? वक्त देगा तुम्हें इसका जवाब,
मै क्या कहूं ? अभी से, अपनी सफाई में.

© एहसास ए मानसी