...

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जहां खुशियां हैं संवरती
परवाह करूं तो
क्यूं न मिल पाएंगी
रिश्तों को महका सके
जो वो खुशियां
चल पड़ता हूं सुबह सवेरे
बेचने वो सब कुछ
जो दे सकेंगी परिवार को मेरे खुशियां
चेहरे मुस्कुराते देख सकूं फुलों के
आभा सुनहरी सी आंखों में
ओ जीवनसाथी तेरे
बेपरवाह कब किसी की
जिंदगी संवरती है
आग जो न हो हौसलों की
जीत कब मिलती है
हंसती सूरत भोली सी
किसे अच्छी नहीं लगती
घर बस चारदीवारी नहीं,
है ये वो जहांन
जहां खुशियां हैं संवरती



© सुशील पवार