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क़ाबिल न हो सका
#AloneInCrowd

कोशिश बहुत करीं, पर मैं क़ाबिल न हो सका
मैं भीड़ में रहकर के भी, शामिल न हो सका।

कितने ही बार यूँ तो मैं, पहुँचा किनारों तक
क़िस्मत में पर कभी मेरी, साहिल न हो सका।

औरों की साँसें छीनकर, मैं रह सकूँ ज़िन्दा
मैं अब तलक़ ज़मीर का, क़ातिल न हो सका।

लड़ता रहा ज़माने में, इंसाफ़ की ख़ातिर
ख़ुद के लिये ही, बस कभी आदिल न हो सका।

कुछ तो कमी रही मेरे, वज़ूद में हरदम
ना जाने क्यूँ, मैं आज भी कामिल न हो सका।

ज़रूरतों के बोझ से, पिसते चले गये
मैं अपने ख़्वाबों का भी तो, हामिल न हो सका।

ख़्वाहिश तो रहीं मेरी भी, परवाज़ों की मगर
क़तरे हुये परों से, कुछ हासिल न हो सका।

पढ़ता रहा किताबें, तू सारी ज़िन्दगी "भूषण"
दुनिया न पढ़ सका जो, वो फाज़िल न हो सका।।