...

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बाबा ❤️
संभलें थे ना क़दम कभी
आज़ उन्हें बड़े होले से रखतीं हूं
टोका ना था कभी किसी ने
आज़ अपनी मासुमियत पर सख़्त लहज़े से डरती हूं
बड़ी रंगरेज है यें दुनिया बाबा
मैं फ़िर बचपन वालें रंग चाहतीं हूं
साथ चाहतीं हूं बाबा फ़िर उंगली पकड़कर चलना चाहती हूं
ठोकर लगेगी तो संभलूं कैसे मैं फिर सीखना चाहतीं हूं
याद आता है वो आंगन बाबा
जहां ख़्याल मेरा और साया हमेशा आपका करीब होता था

© पलक शर्मा

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