...

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इन्तज़ार
उनके इन्तज़ार मैं हमने बरस बिता दिऐ।
पर जब वो सामने आऐ तो
हम नजरें भी न मिला पाऐ।।

उनका यू आगे बड़ना
दिल की धड़कने तेज़ कर गया।
उनकी वो मन्द मन्द मुसकान
दिल को बेचैन कर रही थी।
और हमारी मजबूरी ऐसी
की हम पलके भी न उठा पा रहें थे।।

वो पलके जिन्हें उनके इन्तज़ार में
बिछाऐ रहते थे।
आज इतनी भारी हो ऊठी
की हम नज़रे भी न मिला पा रे।।

जिस मोहबत का इन्तज़ार बरसो किया
आज उससे ही मोहबत का इकरार
यह लफ़्ज न कर पारे।

उनका हमारी ओर आना
और हमारा शर्म से पीछे हटना।
दिल की धड़कने बढ़ जाना
और साँसों का यू ठहर जाना।
कहने को इतनी बाते हैं
मगर लफ़्जों का न मिलना।।

मगर फिर भी इकरार करने की जरूरत न पड़ी
धड़कने कब लफ़्ज बन
साँसों से सब बयान कर गई
की आज खुद की दास्तान भी
ऊनके साथ ही लिख रहें।।


© Aarushi