...

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सब टेढ़े हैं, पर तेरे हैं
तोड़ लो बेटा मुफ़्त की रोटी, जो बाप तुम पर चिल्लाता है
आने वाले भविष्य की ख़ातिर, तुमको आज चेताता है।

सही-ग़लत के लेक्चर दिनभर, जो माँ तुम्हें पिलाती है
हर इक दर पर, जा-जाकर, वो ख़ुद अरदास लगाती है।

'छोटा है, तो छोटा ही रह', कह बहन तुझे हड़काती है
फिर भी ज़रूरत पड़ने पर, विश्वास से, तुझे बुलाती है।

बहुत बड़ी हो गई है छोटी, कहकर जो भाई चिढ़ाता है
देख ज़माने की हालत, वो भी तेरे लिये घबराता है।

माना, सब के सब अड़ियल हैं, माना ज़रा से ऐड़े हैं
पर सब तेरे अपने ही हैं, सब तेरे हैं, भले टेढ़े हैं।

"गुज़र गया जो कोई लम्हां, बाकी बस, रह जाती याद
अक्सर, क़ीमत समझ आती है, चीजें खो जाने के बाद"।।

-भूषण