...

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"एक प्याली चाय"
सहर उठते ही मेरे दरमियान,
रहती है फकत़ एक प्याली चाय।

पहली घूंट जब लबों से हलक तक
उतरती है तो ताज़गी आ जाती है।

उन लम्हात मैं खुद ही से गुफ्तगू करतीं हूं
कोई नहीं होता जानिब मेरे,रहती है तो बस
एक प्याली चाय।

चाय की सौंधी सी खुशबू और कुछ मीठे
बिस्कुटों के स्वाद जैसे समेट लेती है उन लम्हों मुझे

फिर शाम तलक़ रहतीं हूं हर एक काम में मसरूफ
मगर थकन होते हीं बना लेती हूं फिर वही एक प्याली चाय।

© Deepa🌿💙