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व्याप्त
चारों तरफ है व्याप्त
फिर भी है अव्याप्त।
महसूस होता है सब को..
लेकिन नही होता है प्राप्त।
मिलती है हर चीज़ में उस की झलक।
देख रही है उस को सबकी पलक।
फिर भी प्रश्न है ईश्वर है कहाँ?
हर दिल मे है उस को देखने की ललक।
नहीं उसका कोई भी आकर।
परन्तु उसमें रूप है हज़ार।
फिर भी मन सिर्फ महसूस करता है..
जहाँ बंद हो जाये शब्द का द्वार।
बोल रहा जो पक्षियों के द्वारा।
हवा जो गा रही है संगीत प्यारा।
क्या दिल गवाह नही देता .?
इस माया में ईश् का खेल है सारा।
© ChaitanyaTirth
@ChaitanyaTeerth @Writco @Oshir #poem #god #poems
फिर भी है अव्याप्त।
महसूस होता है सब को..
लेकिन नही होता है प्राप्त।
मिलती है हर चीज़ में उस की झलक।
देख रही है उस को सबकी पलक।
फिर भी प्रश्न है ईश्वर है कहाँ?
हर दिल मे है उस को देखने की ललक।
नहीं उसका कोई भी आकर।
परन्तु उसमें रूप है हज़ार।
फिर भी मन सिर्फ महसूस करता है..
जहाँ बंद हो जाये शब्द का द्वार।
बोल रहा जो पक्षियों के द्वारा।
हवा जो गा रही है संगीत प्यारा।
क्या दिल गवाह नही देता .?
इस माया में ईश् का खेल है सारा।
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