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रिश्तों का कर्ज
यह दुनिया है रिश्तेदारों का घर,
हर मंजिल,हर‌ डग पे दिख जाते हैं रिश्तेदार
बचपन का रिश्ता निभाएं मज़ेदार
मिलता है इस रिश्ते में ढेर सारा प्यार।


जैसे ही बढ़ते जाए, रिश्ता भी बढ़ते जाए
दोस्तों की हमजोली , मोहल्ला गली गली
रिश्तों में झगड़े फिर दिखाएं मजबूरी
कुछ रिश्ते छूटे कुछ आगे बढ़े क्योंकि था कमजोरी।

मगर परिवार का रिश्ता कुछ अजीब है यार
फंस गए यहां रिश्ते के कर्ज में आकर
खून के एक एक बूंद में कर्ज भरी जिंदगी
किसका निभाऊं किसका छोड़ूं हो रहा है टकरार।

पल पल मरते हैं,पल पल जीते हैं
कदम कदम पर रिश्ता निभाते हैं,
पिता का श्रम, बड़ों की मेहनत
कर्ज से लदा शरीर बोझ बन जाते हैं।

सही मायने में देखा जाए ,यह सब झूठा ही तो है
यह झूठी रिश्ता ,झूठा फ़र्ज़ में
हम कूट-कूट कर जीवन भर मरते हैं।
अंत समय आता है तो क्या कोई साथ नहीं चलते हैं

सिर्फ एक ही सच्चा रिश्तेदार है
जो जन्म से मरन तक हमारे साथ नहीं छोड़ते हैं
वह है हमारी परछाई जो कभी पीछा नहीं छोड़ते हैं
कब्र, श्मशान तक चलकर अपना कर्ज भर देते हैं।