...

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आज चढ़ी है, शायद कोई वजह बड़ी है
बहुत दिन पहले जो पी थी, जाने क्यों आज चढ़ी है।
कदम भी बहक रहे हैं, शायद कोई वजह बड़ी है।।

मौसम के सितम सुहाने, सुहानी ऋतुएं आई।
चाहे तन धूप जला दे, मन में सावन की झड़ी है।।

आंखों से नींदें रुख़सत, धड़कन भी बढ़ी चढ़ी है।
कैसे इस रात को काटें, बड़ी मुश्किल सी घड़ी है।।

हाँ अब कुछ समझ में आया, इक तस्वीर से बातें की थी।
नशा है उन आंखों का, जिनसे मेरी आंख लड़ी है।।

ज़हन में है उसकी खुशबू, जिस से मन महक रहा है।
जिसे सब कहतें हैं किस्मत, वो मेरे साथ खड़ी है।।

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