...

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र्माडर्न युग
मेरे
अंदर-बाहर
टेढ़ा-मेढ़ा
चलता हुआ ,
दाएं-बाएं
देखता हुआ ,
अंधाधुध...
दौड़ता हुआ ,
रात-दिन
जागता हुआ ,
भीड़-भाड़ में
ज्यों-त्यों
रेंगता हुआ ,
खुशी-ग़म
सच-झूठ ,
मक्कारी,
धोखेबाजी का ,
जहर....
पीता हुआ ,
एक जीता-जागता
स्वार्थी, महत्वाकांक्षी
शहर है ,
दिखावट-सजावट से
तड़कता-भड़कता हुआ
ढोंग- पाखंड का ,
घुंघट ओढ़े हुए
बातों-बातों में
उल्लू बनाता हुआ ,
धूर्त व्यवहारों में
लुका-छिपी ,
खेलता हुआ
कृत्रिम संसाधनों से
लदा हुआ ,
कांक्रीट इमारतों से
बंधा हुआ ,
मंहगी लाइफस्टाइल में
डूबा हुआ ,
वेस्टर्न कल्चर में
खोया हुआ ,
फास्ट पोप्यूलेशन में
धंसा हुआ ,
एयर पोल्यूशन से
थका हुआ ,
भोग-विलास से
पका हुआ ,
भ्रष्ट आचरण से
रुग्ण हुआ ,
अनैतिक रिश्तों से
मरा हुआ,
पूर्णतः
अशांत मन से
चिंतीत, व्यथित
जीवन व्यतीत
करता हुआ ,
प्रकृति से दूर
गांव से विपरीत ,
संस्कृति से अनजान
समाज से बेजार..
बन बैठा है,
टेक्नोलॉजी का गुलाम
काल्पनिक, वास्तविक
प्रतिबिंब से भिन्न ,
नज़रें गड़ाए
मिथ्या दुनिया में
फंसा है ,
सोशल साइट्स के जंजाल में
भटका हुआ ,
मायाजाल के बंवडर में
चौबीसों घंटे व्यस्त
न रोक-टोक, पाबंदियां
अपनी मर्ज़ी का मालिक
किसी का सुनता नहीं
किसी का मानता नहीं ,
बेबाक, बिंदास रवैए से
डार्विन का बाप ,
उत्कांती से आगे
निकल पड़ा है ,
कंधों पर लादकर ,
विकासवाद की यात्रा
सत्य है, शत-प्रतिशत
र्माडर्न युग प्रभाव से
विध्वंसक विचारधारा जन्मी
अडग, अटल पथ पर
पूर्ण परिवर्तित हुआ
मनुष्य का ,
अनूठा, रूप-रंग-ढंग-चाल
देखकर प्रतिक्रिया व्यवहार
विस्मित हुआ सारा संसार ।

© -© Shekhar Kharadi
तिथि-८/८/२०२२, अगस्त