...

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ग़ज़ल
कहाँ किसी को कभी दिखे हैं उदास चेहरे
तमाम चेहरों में छिप गए हैं उदास चेहरे

ये ख़ुश-ख़िसाली का बस नहीं है समझ ले मुझको
मिरी उदासी समझ रहे हैं उदास चेहरे

उदास होना बुरा नहीं है ये ख़ूब समझो
यक़ीन जानो नहीं बुरे हैं उदास चेहरे

भले हज़ारों पहन के आओ नए मुखौटे
मेरी नज़र से नहीं छिपे हैं उदास चेहरे

कभी जो खुल कर के रो लिए थे वो आज ख़ुश हैं
मगर जो चुप थे वो बन चुके हैं उदास चेहरे

ये बात सच है बुझे बुझे हैं हसीन चेहरे
मगर ये क्या है खिले खिले हैं उदास चेहरे

शाबान नाज़िर -
© SN