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प्रेम और तुम
प्रेम की परिभाषा कुछ नहीं
मन के एहसास हैं,
प्रेम ही तो ये, तू नहीं कहीं
दिल के पास है।
सोच में भी न रह गए हम
तेरी तन्हाईयों में भी,
और भरी महफ़िल में भी
तू ही तन्हा मेरे पास है।
लिख दिया तुझको
खुद ही पढ़ लिया तुझे ही,
टूटा दिल तुझसे और दामन
पकड़ लिया तेरा ही।
तेरी खुश्बू बसी साँसों में
आज भी अजीज ख़ास है,
तू क्या थी पागल, ख़ातिर मेरे
न तुझको आभास है।
© विवेक पाठक
मन के एहसास हैं,
प्रेम ही तो ये, तू नहीं कहीं
दिल के पास है।
सोच में भी न रह गए हम
तेरी तन्हाईयों में भी,
और भरी महफ़िल में भी
तू ही तन्हा मेरे पास है।
लिख दिया तुझको
खुद ही पढ़ लिया तुझे ही,
टूटा दिल तुझसे और दामन
पकड़ लिया तेरा ही।
तेरी खुश्बू बसी साँसों में
आज भी अजीज ख़ास है,
तू क्या थी पागल, ख़ातिर मेरे
न तुझको आभास है।
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