...

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दिल की बात
इक़ बार जो टूटा, फिर बारहा टूटता ही गया,
जो भी मिला अपना सा, हमसे रूठता ही गया।

हुनर जीतने का दिल, कभी आया ही नहीं हमें,
देखते ही देखते हाथ, हाथों से छूटता ही गया।

किसकी खता इसमें, न कोई ख़तावार ही रहा,
जिसे भी चाहा, रूठा वो, दिल बेक़रार ही रहा।

दिल की बातें रही दिल में, दम घुटता ही रहा,
कोई न समझा क्यूँ जाने, बस रूठता ही रहा।

नहीं इंतज़ार किसी को मेरा, न कोई अपना ही,
सूनी आँखों का होता क्या, कोई यूँ सपना ही।

टूटे दिल के जज़्बात भी टूटे, यूँ टूटता ही रहा,
साथ नहीं रहा साथ कभी, साथ छूटता ही रहा।

क्या ही कहेगा कोई अब, हुआ क्या क्यूँ कैसे,
न भूले इक़ पल जिसे, पल-पल भूलता ही गया।

इक़ बार जो सामने मेरे, आ जाते वो मेरे ख़ुदा,
जो रहा दिल में बसा, दिल उन्हें ढूँढता ही गया।

विवेक पाठक
#विवेक0799
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