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एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त में सम्बोधन।।
बोले -मै वासुदेव श्रीकृष्ण हूं और मैं तुम्हारे समक्ष
कलकी अवतार दिखलाकर तुमहारी परिछा ली
मगर तुममें से कोई भी सफल नहीं हो सका क्योंकि कलियुग का अन्त ही अहंकार है । और मैं ही चार युग हूं, जहां दिखे जब एक और जब जाहा की ओर
मैं ही कलियुग हूं जहां नारी अपनी सीमा नाग चुकी है , मरियादा का कर दिया नाश और आदमी वासनमाई होकर खो बैठा अपना सत्व तो यही कलियुग है, और यही श्रृष्टि की योनि का नाश हो।।

कन्या -ये आप क्या बोल रहे हैं।।

श्रीकृष्ण मुख्य न्यायाधीश -हा ये कटु सत्य है कि यदि हमने तुम्हें तुमहारा आस्तित्व वापस किया तो
जग काभी कर्म मुक्त नहीं हो पाएगा, और हमेशा हम इस जग बिनजर बद्ध होकर गोल गोल भ्रमण करते ही रहेंगे । और दैवीकाल का अन्त के बाद इसका पूर्ण रूप से संपन्न होना असम्भव लगता है।।
और अब तो यह कदा भी संभव नहीं क्योंकि तुम्हारा लौटाने का मतलब कालचकृ में परिवर्तन जो कि सर्वनाश का कारण बन सकता है, जो कि वास्तविकता में बहुत भयानक दृश्य होगा वो युग तीनों युगो से बड़ा युग कहा जाएगा, क्योंकि वो युग मेरा युग कलकी योग कहलाएगा।। जहां मैं खुद उन्हें उनके कर्मों के फाल पसाद स्वरूप दूंगा।।
#महाअवतरित।।
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