आत्म अवलोकन
आत्म अवलोकन से तात्पर्य है मन के अच्छे-बुरे विचारों का मनन करना या निरीक्षण करना। मानव शरीर परमात्मा की सर्वोत्तम कृति है। मनुष्य के पास ही वह शक्ति है, जिससे वह आत्म अवलोकन कर सकता है। इसके लिए हृदय की शुद्धता सर्वोपरि है। चित शुद्ध होने पर मनुष्य में आत्म ज्ञान आता है। प्राय: महापुरुषों की प्रसिद्धि व सफलता के पीछे उनकी आत्म अवलोकन की भावना रही है। इस आत्म अवलोकन का कोई समय, सीमा व स्थान निश्चित नहीं है हर व्याक्ति अपने अनुसार आत्म अवलोकन कर सकता है और करना भी चाहिए।
हमने दिन भर क्या अच्छे व बुरे कार्य किए, उनमें क्या संशोधन होना चाहिए, इस संबंध में एकांत में अपने मन में झांककर विचार-विमर्श करना चाहिए। समय-समय पर आत्म अवलोकन एक सुदृढ़ व्यक्तित्व को पोषित करना है। जिसने स्वयं को जीत लिया, ढूंढ़ लिया मानो उसने जग जीत लिया।
अपने अंदर झांककर अपने जगत और जीवन के सत्य को समझना हमारे दर्शन की देन है। स्वयं को जानकर ही जग को जाना जा सकता है। जिस दिन मनुष्य आत्म अवलोकन में सफल हो जाता है, उसी दिन उसकी समस्त व्याकुलता समाप्त हो जाती है। हमें विद्यार्थियों में भी आत्म अवलोकन की भावना का उदय करना चाहिए। इससे उनमे विवेक व स्मरण शक्ति का विकास होगा। उनका भविष्य स्वर्णिम होगा। दैनिक जीवन में भी आत्म अवलोकन से हम पूजनीय एव वंदनीय बन जाते हैं। आज देश में ज्ञानियों और बुद्धिजीवियों की कमी नहीं है। लोग विचारों के धनी है पर स्वयं आचरण में अधिकांश निर्धन हैं। इसीलिए कहा गया है ढाई मन ज्ञान तप साधन कर ले पर जब तक मन से मलीनता नहीं धुल जाती है, हमारे जीवन का कोई अर्थ नहीं है।
© राकेश कुमार सिंह
हमने दिन भर क्या अच्छे व बुरे कार्य किए, उनमें क्या संशोधन होना चाहिए, इस संबंध में एकांत में अपने मन में झांककर विचार-विमर्श करना चाहिए। समय-समय पर आत्म अवलोकन एक सुदृढ़ व्यक्तित्व को पोषित करना है। जिसने स्वयं को जीत लिया, ढूंढ़ लिया मानो उसने जग जीत लिया।
अपने अंदर झांककर अपने जगत और जीवन के सत्य को समझना हमारे दर्शन की देन है। स्वयं को जानकर ही जग को जाना जा सकता है। जिस दिन मनुष्य आत्म अवलोकन में सफल हो जाता है, उसी दिन उसकी समस्त व्याकुलता समाप्त हो जाती है। हमें विद्यार्थियों में भी आत्म अवलोकन की भावना का उदय करना चाहिए। इससे उनमे विवेक व स्मरण शक्ति का विकास होगा। उनका भविष्य स्वर्णिम होगा। दैनिक जीवन में भी आत्म अवलोकन से हम पूजनीय एव वंदनीय बन जाते हैं। आज देश में ज्ञानियों और बुद्धिजीवियों की कमी नहीं है। लोग विचारों के धनी है पर स्वयं आचरण में अधिकांश निर्धन हैं। इसीलिए कहा गया है ढाई मन ज्ञान तप साधन कर ले पर जब तक मन से मलीनता नहीं धुल जाती है, हमारे जीवन का कोई अर्थ नहीं है।
© राकेश कुमार सिंह