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सनातन धर्म में सनातन क्या है..

हम आज बहुत गर्व से राम-कथा में अथवा भागवत-कथा में, कथा के अंत में कहते हैं , बोलिए सत्य सनातन धर्म कि जय।तनिक विचारें ? सनातन का क्या अर्थ है ? सनातन अर्थात जो सदा से है, जो सदा रहेगा, जिसका अंत नहीं है और जिसका कोई आरंभ नहीं है वही सनातन है। और सत्य में केवल हमारा धर्म ही सनातन है, यीशु से पहले ईसाई मत नहीं था, मुहम्मद से पहले इस्लाम मत नहीं था। केवल सनातन धर्मं ही सदा से है, सृष्टि के आरंभ से।

किन्तु ऐसा क्या है हिंदू धर्मं में जो सदा से है ? श्री कृष्ण की भागवत कथा श्री कृष्ण के जन्म से पहले नहीं थी अर्थात कृष्ण भक्ति सनातन नहीं है । श्री राम की रामायण तथा रामचरितमानस भी श्री राम जन्म से पहले नहीं थी अर्थात श्री राम भक्ति भी सनातन नहीं है । श्री लक्ष्मी भी, (यदि प्रचलित सत्य-असत्य कथाओ के अनुसार भी सोचें तो), तो समुद्र मंथन से पहले नहीं थी अर्थात लक्ष्मी पूजन भी सनातन नहीं है । गणेश जन्म से पूर्व गणेश का कोई अस्तित्व नहीं था, तो गणपति पूजन भी सनातन नहीं है शिव पुराण के अनुसार शिव ने विष्णु व ब्रह्मा को बनाया तो विष्णु भक्ति व ब्रह्मा भक्ति सनातन नहीं हैं। विष्णु पुराण के अनुसार विष्णु ने शिव और ब्रह्मा को बनाया तो शिव भक्ति और ब्रह्मा भक्ति सनातन नहीं।

ब्रह्म पुराण के अनुसार ब्रह्मा ने विष्णु और शिव को बनाया तो विष्णु भक्ति और शिव भक्ति सनातन नहीं । देवी पुराण के अनुसार देवी ने ब्रह्मा, विष्णु और शिव को बनाया तो यहाँ से तीनो की भक्ति सनातन नहीं रही । यहाँ तनिक विचारें ये सभी ग्रन्थ एक दूसरे से बिलकुल उल्टी बात कर रहे हैं, तो इनमें से अधिक से अधिक एक ही सत्य हो सकता है बाकि झूठ, लेकिन फिर भी सब हिंदू इन चारो ग्रंथो को सही मानते हैं , अहो! दुर्भाग्य !! फिर ऐसा सनातन क्या है ? जिसका हम जयघोष करते हैं? वो सत्य सनातन है परमात्मा की वाणी।

आप किसी मुस्लमान से पूछिए, परमात्मा ने ज्ञान कहाँ दिया है ? वो कहेगा कुरान में। आप किसी ईसाई से पूछिए परमात्मा ने ज्ञान कहाँ दिया है ? वो कहेगा बाईबल में । लेकिन आप हिंदू से पूछिए परमात्मा ने मनुष्य को ज्ञान कहाँ दिया है ? हिंदू निरुतर हो जाएगा । आज दिग्भ्रमित हिंदू ये भी नहीं बता सकता कि परमात्मा ने ज्ञान कहाँ दिया है ? आधे से अधिक हिंदू तो केवल हनुमान चालीसा में ही दम तोड़ देते हैं | जो कुछ धार्मिक होते हैं वो गीता का नाम ले देंगे, किन्तु भूल जाते हैं कि गीता तो योगीश्वर श्री कृष्ण देकर गए हैं परमात्मा का ज्ञान तो उस से पहले भी होगा या नहीं ? अर्थात वो ज्ञान जो श्री कृष्ण संदीपनी मुनि के आश्रम में पढ़े थे। जो कुछ अधिक ज्ञानी होंगे वो उपनिषद कह देंगे, परंतु उपनिषद तो ऋषियों की वाणी है न कि परमात्मा की । तो परमात्मा का ज्ञान कहाँ है ?।। वेद !!

वेद जो स्वयं परमात्मा की वाणी है, उसका अधिकांश हिंदुओं को केवल नाम ही पता है । वेद, परमात्मा ने मनुष्यों को सृष्टि के प्रारंभ में दिए। जैसे कहा जाता है कि "गुरु बिना ज्ञान नहीं", तो संसार का आदि गुरु कौन था? वो परमात्मा ही था | उस परमपिता परमात्मा ने ही सब मनुष्यों के कल्याण के लिए वेदों का प्रकाश, सृष्टि के आरंभ में किया। जैसे जब हम नया मोबाइल लाते हैं तो साथ में एक गाइड मिलती है , कि इसे यहाँ पर रखें , इस प्रकार से वरतें , अमुक स्थान पर न ले जायें, अमुक चीज़ के साथ न रखें, आदि।

उसी प्रकार जब उस परमपिता ने हमें ये मानव तन दिए, तथा ये संपूर्ण सृष्टि हमे रच कर दी, तब क्या उसने हमे यूं ही बिना किसी ज्ञान व बिना किसी निर्देशों के भटकने को छोड़ दिया ? जी नहीं, उसने हमे साथ में एक गाइड दी, कि इस सृष्टि को कैसे वर्तें, क्या करें, ये तन से क्या करें, इसे कहाँ लेकर जायें, मन से क्या विचारें, नेत्रों से क्या देखें, कानो से क्या सुनें, हाथो से क्या करें आदि। उसी का नाम वेद है। वेद का अर्थ है ज्ञान । परमात्मा के उस ज्ञान को आज हमने लगभग भुला दिया है | वेदों में क्या है ? वेदों में कोई कथा कहानी नहीं है। न तो कृष्ण की न राम की, वेद में तिनके से लेकर परमेश्वर पर्यंत वह सम्पूर्ण मूल ज्ञान विद्यमान है, जो मनुष्यों को जीवन में आवश्यक है।

मैं कौन हूँ ? मुझमें ऐसा क्या है जिसमे “मैं” की भावना है ? मेरे हाथ, मेरे पैर, मेरा सिर, मेरा शरीर, पर मैं कौन हूँ ? मैं कहाँ से आया हूँ ? मेरा तन तो यहीं रहेगा, तो मैं कहाँ जाऊंगा, परमात्मा क्या करता है ? मैं यहाँ क्या करूँ ? मेरा लक्ष्य क्या है ? मुझे यहाँ क्यूँ भेजा गया ? इन सबका उत्तर तो केवल वेदों में ही मिलेगा।

रामायण व भागवत व महाभारत आदि तो ऐतिहासिक घटनाएं है, जिनसे हमे सीख लेनी चाहिए और इन जैसे महापुरुषों के दिखाए सन्मार्ग पर चलना चाहिए । लेकिन उनको ही सब कुछ मान लेना, और जो स्वयं परमात्मा का ज्ञान है उसकी अवहेलना कर देना केवल मूर्खता है । तो आइये वेदो की ओर चलें और खूब समझे अपने सनातन धर्म और ईश्वर को।

© राकेश कुमार सिंह