...

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मन की बेचैनी
ना जाने मेरा ये मन इतना क्यों बेचैन है
सबकुछ तो है मेरे पास, पर ना जाने फिर इसे किसकी तलाश है
नाही ये मुझे चैन से सोने दे रहा है और
नाही चैन से जागने
हर वक्त विचारों के भंवर में खोया सा रहता है
शरीर पर तो चोट के कोई निशान नहीं पर आत्मा चोट से पीड़ित है
बहुत से खूबसूरत रिश्ते भी हैं
पर अब उनमें मुझे अपनी मौजूदगी नज़र नहीं आ रही
हृदय फूट फूटकर रोना चाहता है पर
आंखों ने आंसुओं को रोक रखा है
दिल कोशिश तो बहुत कर रहा है मुस्कुराने की पर थककर हार जा रहा है
कई सवाल है जिनके जवाब चाहता है ये मन......
पर फिर सोचता है कि....
शायद ये मेरे परिवर्तन का वक्त है
शायद कुछ बहुत बेहतरीन होने वाला है
शायद मेरे अंदर का ये तूफान मुझे बाहर के तूफान से लड़ने के लिए तैयार कर रहा है
शायद ये मुझे.. मुझसे मिलवाने के लिए तैयार कर रहा है।

© Sarika