...

9 views

"मार्था और मरियम"(बाइबिल कथा)
एक बार यीशु यहूदियों के गांवों और कस्बों से होते हुए अपनी यात्रा कर रहे थे।वह बेथानी नामक गांव में पहुंचे जो यरूशलेम से दो मील की दूरी पर था। वहां मार्था अपने भाई और बहन के साथ रहती थी।
उसने उदारतापूर्वक यीशु का आदर और सत्कार किया। यीशु सुसमाचार सुना रहे थे जिसे सुनने के लिए मरियम यीशु के चरणों के पास बैठ गई और उनकी बातें सुनने लगी। यीशु की बातों को सुनना अपने आप में एक आनन्द था और ज्ञान वृद्धि का स्रोत था।
उधर मार्था तरह तरह की तैयारियों में लग गई। प्रभु यीशु जहां भी जाते सुसमाचार सुनाने उनके बारह चेले भी उनके साथ जातें थे तो मार्था ने इसे एक आत्म सम्मान के तौर पर लिया कि वो बेहतर से बेहतर तरीके से यीशु और उनके चेलों का स्वागत करें कि कहीं उसकी नाक न कट जाए।
बहुत देर तक मार्था अकेली ही खुद से जूझती रही,अंत में वह अपनी बहन मरियम पर क्रोधित हो उठीं कि सारे कार्य उसे खुद ही करने पड़ रहे हैं और उसकी बहन ने उसे अकेला ही छोड़ दिया है।
अतः वह क्रोधित होकर प्रभु के पास गई और बोली हे प्रभु क्या आपको नहीं दिखाई देता कि मेरी बहन ने मुझे अकेला ही छोड़ दिया है सारे कार्य करने को और खुद यहां बैठ गई है।
यीशु मुस्कुराए और बोले मार्था तुम्हें किसने कहा है इतने कार्य करने को। क्या मैं यहां लज़ीज़ पकवान खाने आया हूं? तुमने मरियम का बैठना देखा और मैंने ये देखा कि जबसे मैं यहां आया हूं मरियम अपने समस्त कार्य भूलकर केवल मेरे चरणों पर ही बैठी है कि वो ज्यादा से ज्यादा समस्त बातों को खुद में आत्मसात कर सकें।हे मार्था परमेश्वर केवल मन और हृदयों को देखता है बाहरी आडंबरो से उसे कोई प्रीति नहीं होती। मार्था की आंखें खुल गईं और वो भी प्रभु के बातों को मन और हृदय से सुनने लगी।(समाप्त) लेखन समय-3:10
दिनांक 22.4.24- सोमवार


© Deepa🌿💙