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मन का माया जाल...✍️✍️✍️
हमारे शरीर में दो वस्तुएं होती है
जो हमारे जीवन में बहुत ही
महत्वपूर्ण होती है पहली होती है
आत्मा और दूसरी होती है मन।
आत्मा को सुकर्मों से शान्ति
मिलती हैऔर मन को
कुकर्मो से शान्ति मिलती है
इन दोनों के आचरण एक
दूसरे से बिल्कुल भिन्न होते हैं।
आत्मा भगवद् प्राप्ति के
पथ पर अग्रसर होती है पर मन
भगवान के सान्निध्य से दूर
भागता है परन्तु जब इसे
भक्ति रूपी कोड़े से पिटाई लगती है
तो यह घबराने लगता है
और हमें वह काम बन्द
करने की अनुमति देता है
परन्तु आत्मा मना करती
है फिर भी इसमें विजय
मन की होती है क्योंकि
उस समय हमारा मन आत्मा
से बलवान होता है
जैसे ही आप कीर्तन, ग्रन्थ, मंत्र,
भागवत, सत्संग का मनन
चिन्तन करते हैं।
फिर ये फड़फड़ाने लगता है
और हमें नींद आने लगती है।
क्यों कि इसे पता है अगर इस मानव
को ये पता चल गया कि इसके द्वारा
बनाया गया ये माया जाल सब
मिथ्या है तो वह उसे वश में करने
की कोशिश करेगा। इसीलिए मन
मानव को सांसारिक भोग विलास में
लिप्त रखता है ताकि वास्तव सच्चाई
का आभास भी न हो सके।
ये आपको कई प्रकार से प्रताड़ित
करता है। जैसे
मान लीजिए आपने सुबह जल्दी
उठने का एक प्रारूप बनाया
तो ये आपका समर्थन करेगा परन्तु
मना नहीं करेगा क्योंकि ये इसकी
खासियत है कि वह मना भी नहीं
करेगा और काम भी पूरा नहीं
करने देगा।
जैसे ही आप अपने नियत समय पर
उठे वैसे ही आपको लालच देने
की कोशिश करेगा जैसे अभी और सो ले
अभी तो रात है इतनी जल्दी उठकर
क्या करेगा बस पांच मिनट और सो ले
और जैसे ही आप दुबारा सोये फिर
आपकी आंख आठ बजे खुली।
फिर आपको अन्दर से जलील करेगा
कि चार बजे की कहा था खुद ही
न उठ पाया।
यह इसके द्वारा किया गया एक छल है
ये मन विचारों का एक पुतला है जो
इसी से सबको भ्रमित करता रहता है।
जिस दिन से आप आत्मा की
आवाज सुननी शुरू कर दोगे
आधी से ज्यादा टेंशन समाप्त
हो जायेगीं।




© Shaayar Satya