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"मंडप"(भाग- २)
पिछले भाग में आपने पढ़ा कि कुसुम ने जब मोहित के पापा की भर्राई हुई आवाज़ सुनी तो चिन्तित हो उठी, उसे ये बात काफी रहस्यमयी लगी कि मोहित स्कूल भी नहीं आया और उसके पापा की ऐसी आवाज जरूर कुछ गड़बड़ है...और कुसुम ने पूरी बात जानने की ठान ली।
दूसरे दिन मोहित जब स्कूल आया तो कुछ गुमसुम सा था,रिसेस में कुसुम मोहित के पास गई और प्यार से उसे अपने पास बुलाया, सभी बच्चे अपनी अपनी टिफिन खानें में मस्त थे, कुसुम ने मोहित से पूछा कि बेटा आखिर कल क्या हुआ था तुम स्कूल नहीं आए थे तो नन्हा मोहित रोने लगा और बोला मैडम कल मेरी मां पापा से बहुत झगड़ा कर रही थी और कह रही थी कि वो हम सबको छोड़कर चली जाएगी सुनकर कुसुम आवाक रह गई फिर उसने मोहित से और कुछ नहीं पूछा और अपनी सीट पर आकर बैठ गई और सोचने लगी कुछ स्त्रियां क्यों ऐसी होती है क्यों वो अपने जीवन साथी को समझ नहीं पातीं है?
और ऐसे ही ढेरों सवाल मन में लिए वो घर चली आई। देखते ही देखते एक महीना बीत गया और फिर पेरेंट्स टीचर्स मीटिंग आ गई। कुछ देर बाद सुकेश(मोहित के पापा) मोहित के साथ रूम में आए। मोहित के इस बार भी रिजल्ट खराब हुए थे वो जैसे ही बोलने लगी सुकेश बोल उठे क्या करें मैम जब घर का माहौल ऐसा हो तो बच्चा क्या पढ़ेगा फिर? कुसुम ने कहा कि यदि आप चाहें तो मैं मोहित को ट्यूशन पढ़ा सकतीं हूं सुकेश राजी हो गए लेकिन शर्त रखी कि कुसुम को घर आकर पढ़ाना होगा वो शाम को ही घर आते हैं तो कब उसे ले जायेंगे और.... मां को तो फुर्सत ही नहीं कहकर वो चुप हो गये, कुसुम राजी हो गई। दूसरे दिन से ही वो मोहित के घर जाकर उसे पढ़ाने लगी उसे मोहित को पढ़ाते हुए तीन चार दिन हो गए थे इस बीच एक दिन भी मोहित की मां उसे नहीं दिखाई दी थी हां सुकेश जब शाम को आते तो खुद के लिए और कुसुम के लिए चाय बना लातें इस बीच कुसुम सुकेश को ही समझा देती उसे क्या और कैसे याद कराना है मोहित को।
एक दिन जब कुसुम मोहित के घर गई तो मोहित की मां नीलम ने दरवाजा खोला वो एक खूबसूरत स्त्री थी खैर खूबसूरती में कुसुम भी कुछ कम नहीं थी उसकी बोलती आंखें किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकतीं थीं। लेकिन नीलम का स्वभाव उसे थोड़ा तेज और रूखा सा लगा उसने एक उचटती सी निगाह कुसुम पर डाली और अपने कमरे में चली गई। कुछ देर बाद जब सुकेश घर आए तो वहीं चाय बना लाएं। कुसुम ने सुकेश से पूछना चाहा बहुत कुछ मगर किसी के निजी जीवन के बारे में वो क्या पूछ सकती थी।
दिन इसी तरह बीतते रहे और अर्द्ध वार्षिक परीक्षा में मोहित के बहुत अच्छे नंबर आए थे तो सुकेश बहुत प्रसन्न हुआ और कुसुम का बहुत आभार व्यक्त किया।
एक दिन कुसुम जब मोहित के घर आई तो उस दिन मोहित और सुकेश दोनों उदास बैठे थे पूछने पर पता चला मोहित कहीं घूमने जाना चाहता था लेकिन मां अपने किसी दोस्त के साथ बाहर चली गई है।तो आप मोहित को साथ लेकर घूम आएं न!
सुकेश कुछ कहता इससे पहले ही मोहित बोल उठा मैडम आप भी चलो न हमारे साथ तो सुकेश भी इसरार करने लगा आखिर कुसुम को राजी होना पड़ा।बाहर जाकर सबने खूब इन्जाय किया और सुकेश कुसुम को उसके घर तक छोड़ने गया जब कुसुम कार से उतरने लगी तो सुकेश बोल उठा आज आपके साथ हम दोनों को घूम कर खूब अच्छा लगा, कुसुम आभार व्यक्त करते हुए घर चली आई ।
धीरे-धीरे कुसुम को लगने लगा था कि वो सुकेश को पसंद करने लगी है,उधर सुकेश भी कुसुम की ओर खिंचाव महसूस करने लगा था।अब तीनों अक्सर घूमने जाने लगे थे,एक दिन कुसुम ने सुकेश से नीलम के बारे में पूछा कि आखिर नीलम इतना रूखा व्यवहार आपके साथ क्यों करती है? तो सुकेश चुप न रह सका और उसने कुसुम को सबकुछ बता दिया। दरअसल नीलम साईकोपेथ महिला थी वो कब खुश हो जाए कब नाराज कोई
नहीं जानता था उसके माता-पिता ने ये बात गोपनीय रख कर सुकेश को नीलम को सौंप दिया था। यही कारण था कि सुकेश पति-पत्नी का सुख क्या होता है ये नहीं जान पाया था।यूं तो कहने को नीलम मोहित की मां थी लेकिन एक मां का प्यार वो मोहित को कभी न दे सकी थी और खुद में ही मस्त रहा करती थी।
सुनकर कुसुम को बहुत दुख हुआ और वो भारी कदमों से घर चली आई।
एक दिन सुकेश ने कुसुम को फ़ोन पर बताया कि नीलम ने जहर खा लिया है उसे अस्पताल ले जा रहे है।
शाम को सुकेश ने फ़ोन किया और बताया डाक्टरो ने नीलम को बचाने की बहुत कोशिश की लेकिन असफल रहे क्योंकि पूरा जहर शरीर पर फ़ैल चुका था। कुसुम शाम को मोहित के घर गई तो नन्हा मोहित रो रहा था और सुकेश तो जैसे जड़ हो गये थे।
धीरे-धीरे समय गुजरता रहा और एक दिन सुकेश ने अपने प्रेम का इजहार कर दिया सुनकर कुसुम ने बस इतना ही कहा कि मैं शादीशुदा हूं और घर चली आई। लेकिन सच तो ये है शादी शुदा होकर भी वो कुंवारी थी।उसका भी जीवन सुकेश से अलग थोड़ी था।
उधर एक दिन जब रात को कुसुम के पति पानी पीने उठें तो सपने में कुसुम को बड़बड़ाते हुए सुना तो सब कुछ समझ गए।वो बहुत समझदार और सुलझे हुए व्यक्ति थे और उन्होंने एक कड़ा निर्णय ले लिया। दूसरे दिन सुबह वो कुसुम के लिए चाय बना लाएं और बैठकर कुसुम के साथ चाय पीने लगे।और बोले देखो कुसुम मैं तुम्हारी तकलीफ और नहीं देख सकता मैं एक अधूरा व्यक्ति हूं लेकिन तुम्हारे जीवन को भी मैंने रिक्त सा कर दिया है।तुम परेशान न हों मैं तुम्हें डिवोर्स दे दूंगा फिर तुम उससे विवाह कर लेना जिसे तुम पसंद करती हो।
लेकिन...... तभी उन्होंने कुसुम के होंठों पर अपने हाथ रख दिए।बस बहुत सह लिया तुमने सबकुछ अब तुम्हारे जीवन की रिक्तता को पूर्णता में मुझे बदलना है। कुसुम उनके पांवों में गिर पड़ी।
लगभग ६ महीने बाद दोनों का डिवोर्स हो गया और आज कुसुम की शादी है सुकेश के साथ।वो मन ही मन बहुत कृतज्ञता व्यक्त कर रही है अपने उस पति का जिसने खुद अपूर्ण होकर भी आज उसके जीवन में पूर्णता का रंग भरने की ठानी है।
विवाह उपरांत कुसुम सुकेश संग उसके घर चली आई । प्रथम रात्रि जब सुकेश की देह की गंध उसने महसूस किया तो खुद में ही एक पूर्णता का एहसास उसे होने लगा और भावातिरेक में वो सुकेश के बांहों में सिमट गई।
(समाप्त)- 10:30
3.4.24, बुधवार



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